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गोतीर्थ विद्यापीठ का लक्ष्य यह है कि,विद्यार्थी स्वकल्याण और सुख को साध्य करने के साथ-साथ अन्य का भी हित और सुख की चिंता करें।
संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य कवि श्री भर्तृहरि जी ने एक सुभाषित में हमें सत्पुरुष और दुर्जन के लक्षण बताए है कि,
" एते सत्पुरुषा परार्थ घटका स्वार्थान् परित्यज ये "।
अर्थात् एक तो सत्पुरुष होते हैं जो स्वार्थ के बदले परमार्थ का सोचते हैं दूसरे सामान्य होते हैं जो स्वार्थ के साथ अन्य का भी विचार करते हैं तीसरे स्वार्थ के लिए अन्य का अहित करते हैं परंतु दुर्जन जो चौथे प्रकार के हैं वह बिना कारण अन्य के हित का नाश करते हैं अतः वर्तमान शिक्षण का भारतीय करण करना सत्पुरुष निर्माण के लिए अतीव आवश्यक है|
मुख्य उद्देश्य
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गोपालन
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गोआधरीत कृषि
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गव्य आधारित चिकित्सा
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गव्य से ओषधि निर्माण
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आचार्य निर्माण
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धर्मानुकूल अर्थ व्यवस्था


सामान्य उद्देश्य
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गोमाता और भारतमाता को केंद्र में रखते हुए शिक्षा प्रदान करना।
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छात्र भारतीय प्राचीन कलाओं में निपुण हो और शिक्षण पूर्ण होने पर वो स्वावलंबी बने।
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छात्र विद्यापीठ में प्राप्त हुई विद्याओं को व्यवहारिक रूप से समाज में उपयोग कर सके और इस तरह से सम्पूर्ण राष्ट्र हमारी प्राचीन विरासत से अवगत हो।
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छात्र न्याय, अद्यात्म, सत्य, उदारता, समानता, गौसेवा, राष्ट्रभक्ति और चरित्र के पाठ पढ़े और राष्ट्र का नवसर्जन करे।
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बालक को अपने भीतर की प्रतिभा की पहचान हो और वो उसका विकास कर सके. इस तरह वो अपने मन को अच्छे लगने वाले विषय में प्रगति करे।
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भारत की संतानों का सर्वांगीण विकास हो और परिणाम स्वरुप वो विश्व में हर जगह उच्च स्थान पर विराजमान हो।
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बालक के भीतर की प्रतिभा को विकसित करने के लिए शिक्षण मातृभाषा में हो।
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बालक को शिक्षण के लिए आनंददायक वातावरण प्रदान करना।
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देवभाषा संस्कृत को केंद्र में रखते हुए बालक के बौद्धिक और नैतिक विकास को वेग प्रदान करना।
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आयुर्वेद के शिक्षण से बालक को (और इस प्रकार से पूरे समाज को) पूर्णत: स्वस्थ बनाने का प्रयास करना।
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गोआधारित कृषि और गौमाता के पंचगव्य से निर्मित खाद का उपयोग करके देश को समृध्द बनाना ।


सत्यनिष्ठा
सादगी ही सच्ची ईमानदारी है। पारस्परिक संपर्क विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। छात्र अवस्था में अधिग्रहित यह गुण जीवनभर उपयोगी रहता है। वास्तव में कुटिलता कुटिल मनुष्यों की संगति से ही फैलती है। हमारे गुरुकुल में, सादगी का पाठ प्राथमिक स्तर पर ही दिया जाता है, इसलिए बच्चा स्वाभाविक रूप से इस गुण को आत्मसात् करता है और जीवन को धन्य बनाता है। यह गुण सिर्फ छात्र के लिए हैं ऐसा भी नहीं है।। वास्तव में, छात्रों में गुरुजनों की ही ईमानदारी झलकती है। इस गुरुकुल में गुरुजन भी इस मामले पर उचित अनुपात में ध्यान देते हैं।
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