
भारतीय संस्कृति उत्सव
भारत को सांस्कृतिक और पारंपरिक त्योहारों के देश के रूप में जाना जाता है l भारत में हर महीने त्योहारों का आनंद लिया जा सकता है। प्रत्येक उत्सव को अलग-अलग रीति-रिवाजों, विश्वासों और इसके पीछे के महत्वपूर्ण इतिहास के अनुसार अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।सांस्कृतिक उत्सव के द्वारा हमारी संस्कृति एवं कलाएं प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त होता है। सही में अगर देखा जाए तो संस्कृति एवं संस्कृत भाषा रक्षा करने के लिए योग्य है।भारतीय शिक्षा में विविध प्रकार के सांस्कृतिक उत्सव एवं विविध प्रकार के शास्त्रीय गायन वादन नृत्य एवं कलाओं के द्वारा भारतीय संस्कृति की रक्षा होती है। २०१८ दिसंबर २४ से ३१ तक भारत विकास संगम के द्वारा भारतीय संस्कृति उत्सव ५ का आयोजन विजयपुर कर्नाटक में किया गया था। सद्भाग्य से इस कार्यक्रम में विद्यापीठ के छात्रों को गो सुक्तम एवं गुजरात का लोक नृत्य रास गरबा प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त हुआ था इस कार्यक्रम में अंदाज जीत २५००००० से भी ज्यादा कृषक एवं गोपालक लोग जुड़े थे।

प्रथम वार्षिक समारोह
गोतीर्थ विद्यापीठ का प्रथम वार्षिक उत्सव का आयोजन १५/४/२०१७ को रखा गया था।जिसमें गुजरात राज्य के शिक्षण मंत्री श्री भूपेंद्र सिंह चुडासमा और कोल्हापुर कनेरी मठ के काडसिद्धेश्वर स्वामी जी उपस्थित रहे थे।
सोला भागवत विद्यापीठ के श्री भागवत ऋषि जी एवं विद्वत जनों की उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न हुआ

द्वितीय
वार्षिक समारोह
विद्यापीठ द्वारा हर साल वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें विद्यापीठ के प्रत्येक विद्यार्थी को प्रस्तुतीकरण का अवसर दिया जाता है। संपूर्ण वर्ष में विद्यार्थियों ने विद्यापीठ के द्वारा जो कौशल प्राप्त किया है उसकी झलक प्रस्तुत करते हैं। हर साल वार्षिक उत्सव में अतिथि विशेष में शिक्षा क्षेत्र के साथ जुड़े हुए विद्वानों एवं विविध क्षेत्रों के तजज्ञ को आमंत्रित किया जाता है।
विद्वानों के द्वारा विद्यापीठ के छात्रों को आशीर्वचन भी प्राप्त होता है। वार्षिक उत्सव में शास्त्रीय गायन वादन नृत्य, रज्जू मलखंब, स्तंभ मलखंब, कलरी पयट्टु, यज्ञ, श्रीमद भगवत गीता जी के श्लोक, अष्टाध्यायी सूत्र पाठ, वैदिक गणित, चित्रकला आदि प्रस्तुति छात्रों के द्वारा हर बार विविधता के साथ की जाती है। ऐसे कार्यक्रमों के द्वारा अभिभावक एवं आमंत्रित अतिथि गण का गुरुकुल परंपरा की और सम्मान और भी बढ़ जाता है। और प्रस्तुतीकरण से छात्रों का उत्साह बढ़ता है।

कर्णावती नगर में संस्कृत भारती द्वारा आयोजित संस्कृत सम्मेलन में गोतीर्थ विद्यापीठ के छात्रों ने संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए भाग लिया।

अगस्त २०१९ में प्राण योग आश्रम तिरुपति में गोतीर्थ विद्यापीठ के छात्रों को प्रस्तुतीकरण का अवसर प्राप्त हुआ।यह आश्रम की स्थापना श्री कैलाश गुरु जी ने की हुई है।

विद्यापीठ में राष्ट्रीय त्यौहार उत्सव की तरह मनाया जाता है। ध्वज वंदन श्रेष्ठ कर्म करने वालों के हाथों करवाया जाता है।

होली का त्यौहार दो ऋतुओं के संधि काल में होता है अतः वातावरण में विषाणु ज्यादा होते हैं इसे दूर करने के लिए वैदिक होली का आयोजन हमारे शास्त्रों में बताया गया है। दो महीने पहले विद्यापीठ के छात्र गण वैदिक होली के लिए उपले तैयार करते हैं।
विविध औषधियों मिलाकर हवन सामग्री तैयार करते हैं और अग्नि सूक्त द्वारा पूजन एवं प्रदक्षिणा करते हैं।

शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की उपासना रुद्राभिषेक,भजन ,कीर्तन एवं स्तोत्र के द्वारा की जाती है।

परम आदरणीय इन्दुमतीजी काटदरे द्वारा बालनन्दिनी नाम के पुस्तक का विमोचन गोतीर्थ विद्यापीठ में किया गया।

गांधीजी की १५० वी जन्मजयंती।
गुजरात में इस दिन को रेटिया (चरखा) बारस के नाम से जाना जाता है। तो इस दिन को गांधी आश्रम में समूह चरखा कांतने का आयोजन किया गया था सुबह के २ घंटे के लिए।अपने विद्यापीठ के ज्यादातर बच्चों का कपास की खेती से लेकर सूत की कताई का काम और हाथ करघे पर कपड़े की बुनाई के काम का अभ्यास तो चल ही रहा है।तो आज कुछ बच्चों को गांधी आश्रम में समूह चरखा कांतने के लिए ले जाया गया था। जहा विद्यार्थियों ने पूरी विद्या कि प्रस्तुति तो की ही किन्तु दूसरी शालाओं के बच्चों को चरखे की विद्या सिखाई।साथ ही हैन्डलूम के क्षेत्र में किस तरह के और भी साधन और यंत्र होते है उसके संग्रहालय की मुलाकात की और अंत में एक पुस्तकालय कि मुलाकात ली, जिससे कई विषय को पढ़ने में रुचि उत्पन्न हो उसका एक प्रयत्न हुआ।

कपास को भारत में "सफेद सोना" कहा जाता है. यही सफेद सोने को खेत से लाकर, बीज को रूई से अलग करने से लेकर रेशों को पींजना और धागा बनाने तक की प्रक्रिया के द्वारा बच्चों के साथ कुछ प्रयास. धैर्य और एकाग्रता के प्रतीकरूप चरखे द्वारा स्व-निर्भरता के विचार की ओर अभ्यासार्थीयों में संस्कार का सिंचन हो उसका एक छोटा सा प्रयास.

गोतीर्थ विद्यापीठ के अभ्यासार्थीयों के द्वारा मिट्टी का कार्य।
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