गोतीर्थ विद्यापीठ द्वारा श्रेष्ठ शिक्षा का प्रयास
जो शिक्षा व्यवस्था चरित्र निर्माण के विषयों के अध्ययन का आधार नहीं होती वह शिक्षा व्यवस्था निरर्थक है। जिस शिक्षा व्यवस्था को सर्वश्रेष्ठ मानकर विद्यार्थी को उत्तम विद्वान माना जाए और वही व्यक्तिगत एवं प्रजा के रूप में पंचमहाभूत प्राणी,गरीब एवं स्त्री का विनाश और अपमान करने वाला लालच करने वाला, अपने स्वार्थ के लिए दूसरों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाला, माता,पिता,आचार्य,अतिथि, राष्ट्र एवं समाज की चिंता न करने वाला हो तो ऐसी शिक्षा व्यवस्था क्या श्रेष्ठ है? अपने बच्चों का भविष्य अच्छा सोचने वाले अभिभावकों को यह बात विवेक पूर्वक समजनी चाहिए।
भविष्य के अच्छे नागरिकों को तैयार करने के लिए संपूर्ण भारत में बहुत सारी संस्थाएं विविध स्थानों पर श्रेष्ठ प्रयास कर रही है ऐसा ही एक प्रयास गोतीर्थ विद्यापीठ कर्णावती गुजरात में स्थित बंसी गीर गोशाला के सांनिध्य में युगानुकुल भारतीय शिक्षा प्रदान करने का कार्य कर रही है।

गोपालन
गोसेवा हमारा परम कर्त्तव्य है। विद्यार्थी गोमाता की सेवा का महत्व समझकर गोपालन करे और साथ ही साथ पंचगव्य आधारित उत्पादन करके भविष्य में देशी गाय की प्रजाति का संवर्धन कर सके ऐसी शिक्षा यहाँ दी जाती है। इसके उपरांत यहाँ गौ मूत्र, गोबर, घी, दही और दूध – इन पंचगव्यों पर आधारित औषधियां बनाने का लक्ष्य भी है। इससे कई असाध्य रोगों का सफल इलाज हो सकेगा।

गोआधारित कृषि विद्या
भारत कृषि प्रधान देश रहा है।अर्थशास्त्र में उत्तम कृषि कहा गया है मध्यम व्यवसाय और कनिष्ठ नौकरी बताया गया है।इस विद्यापीठ का प्रमुख विषय गो आधारित कृषि है ।देसी गाय माता के गोबर एवं गोमूत्र से ही कृषि कराना सिखाया जाता है। गोआधारित कृषि करने के कारण जमीन में रहे हुए मित्र जीवाणु का विनाश नहीं होता।भूमि उजड़ नहीं बनती। हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि जैसा अन्न वैसा ही मन होता है अतः अन्न अगर सात्विक होगा तो हमारा मन भी सात्विक बनेगा इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर विद्यापीठ के छात्र गण परिसर में सब्जियां धान्य एवं औषधि लगाते हैं। कृषि के कारण छात्र गण पंचतत्व के साथ जुड़ते हैं और यह प्रक्रिया पूरी आनंददायक होती है। प्रतिदिन अंदाजीत एक घंटा छात्र कृषि करते हैं।

संस्कृत
भाषा अगर श्रवण,संभाषण,पठन और लेखन इस क्रम में पढ़ाई जाए तो छात्र शीघ्र ग्रहण कर सकता है, अतः विद्यापीठ में यही क्रम से सभी भाषाएं पढ़ाने का आग्रह रखा जाता है। छात्र संस्कृत में संभाषण करना सीखे ये महत्त्व की बात है। इसलिए यहाँ पढ़ते हुए प्रत्येक बच्चे का अध्ययन संस्कृत संभाषण से ही प्रारंभ होता है. संस्कृत में छोटे छोटे वाक्य सीख लेने के बाद आचार्य पाणिनिकृत ‘अष्टाध्यायी’ के सूत्रों को कंठस्थ कराया जाता है। इसके साथ ही वैदिक मंत्रपाठ, सुभाषित, स्तोत्र, शब्दरूपावली, धातु रुपावली इत्यादि का कंठस्थिकरण होता है। यहाँ का मुख्य विषय संस्कृत है क्योंकि हमारे प्राचीन ग्रन्थ संस्कृत में ही लिखे हुए हैं।मुख्य ग्रंथों का अनुवाद संस्कृत से संस्कृत में ही करें ऐसा हमारा प्रयास है।

मातृभाषा
मातृभाषा के महत्व को ध्यान में रखते हुए यहाँ गुजराती भाषा का अध्ययन कराया जाता है। हिंदी और अंग्रेजी भी आवशयकतानुसार अध्ययन कराया जाता है।
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विज्ञान
आधुनिक समाज की अपेक्षा है कि ज्ञान और विज्ञान का समन्वय होना चाहिए। इसलिए यहाँ विज्ञान का सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक ज्ञान दिया जाता है और भविष्य में प्रयोगशाला बनाने की संकल्पना भी है। कृषि एवं गोपालन को ध्यान में रखते हुए भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र और जीवविज्ञान जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों का अध्ययन भारतीय दृष्टिकोण से कराया जाता है।

वैदिक गणित
जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी तथा श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज के द्वारा रचित सोलह सूत्र तथा तेरह उपसूत्र पढाये जाते हैं। इससे विद्यार्थियों की गिनने की क्षमता बढ़ती है। इसके साथ वर्तमान गणित का पाठ भी यहाँ कराया जाता है। अबेकस के द्वारा अंकगणित में बहुत सारे अंकों की गणना शीघ्र ही कर सके ऐसा हमारा प्रयास होगा। लीलावती आदि ग्रंथों का अध्ययन कर सकें ऐसे छात्र तैयार करना चाहते हैं।

शारीरिक शिक्षण
योग, प्राणायाम, आसन, ध्यान, सूर्य नमस्कार, भारतीय खेल, जूडो, रोप मलखंभ, पोल मलखंभ एवं कलरिपयट्टू कराया जाता है। कलरिपयट्टू विद्या शिव ताण्डव के आधार पर महर्षि अगस्त्य, महर्षि परशुराम आदि ऋषियों द्वारा मनुष्य के आत्मारक्षण हेतु हमें प्राप्त हुई है।इस विद्या के सीखने से शरीर सुदृढ होता है और मन की एकाग्रता बढ़ती है। बालक स्वरक्षा और राष्ट्र रक्षा करने में समर्थ होता है। इसी ध्येय से कलरिपयट्टू का प्रशिक्षण यहाँ दिया जाता है।

इतिहास
भारत के आदर्श चरित्रों द्वारा विद्यार्थियों का विकास हो,इस हेतु से भारत के प्राचीन ऐतिहासिक ग्रन्थ रामायण ,श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत,आदि पढाये जाते हैं। चरित्र निर्माण के लिए नर रत्न एवं नारी रत्नों के बारे में बताया जाता है।

आयुर्वेद
नाड़ी परीक्षण, एनर्जी स्कैन मशीन द्वारा परीक्षण एवं प्राणिक हीलिंग के द्वारा परीक्षण करना सिखाया जाता है।‘नाडी विज्ञान’ आयुर्वेद का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।इससे त्रिदोष (वात, पित्त और कफ़ से उत्पन्न दोष) जांचे जा सकते हैं और इनका उपचार आहार, विहार और औषधि के द्वारा किया जा सकता है। .विद्यार्थी भविष्य में पंचकर्म चिकित्सा और गो आधारित पंचगव्य चिकित्सा से उपचार भी करेंगे।

संगीत
विद्यार्थी गायन, वादन और नृत्य के द्वारा आत्मा का शुद्धिकरण करते हैं। यहाँ शास्त्रीय गायन वादन , सुगम संगीत, शास्त्रीय नृत्य और लोकनृत्य सिखाया जाता है।
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इसके इलावा यहाँ अपना कार्य स्वयं ही करना,यज्ञकार्य, चित्रकला, कपास से कपड़ा बनाना, मिट्टी से भवन, कुण्ड, मूर्ति एवं चुला निर्माण करना,पाककला, मेहँदी कला, अतिथि सेवा, इत्यादि भी यहाँ सिखाये जाते हैं।
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पता
बंसी गीर गोशाला
शान्तिपुरा चौकड़ी के पास
मेट्रो मोल की गली में,
सरखेज,अहमदाबाद,पिन:- ३८२२१०