दिनचर्या  

गोतीर्थ विद्यापीठ  शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से विद्यार्थी को तैयार करने का प्रयास कर रहा है ।  इसके साथ ही विद्यार्थी भारतीय समाजव्यवस्था, अर्थव्यवस्था एवं शास्त्र को जाने एवं व्यवहार में लावे ऐसा आयोजन किया गया है ।

इस आयोजन के भागरूप विद्यार्थीगण का जागरण प्रात: ५.०० बजे से होता है ।  स्नान-शौच आदि कार्य के बाद यज्ञ करके विद्यार्थीगण योगासन-प्राणायाम करते है ।  इस के बाद वे अपने अपने सेवाकार्य में जूड़ जाते हैं; जिस में प्रत्येक जूथ को अलग अलग सेवा दी गई हो वह सेवा होती है । ७.३० को अल्पाहार दिया जाता है।

प्रातः ८.३० बजे प्रार्थनासभा और बाद में विषयानुसार अभ्यास वर्ग  १२.१५ तक चलते हैं ।  गीताजी के अध्याय का पारायण होने के बाद मध्याह्न भोजन होता है ।  जिस में परोसने और स्वच्छता के कार्य में विद्यार्थीगण जुड़ जाते हैं ।

मध्याह्न वामकुक्षी के बाद पुन: २.००  बजे से कक्षा प्रारंभ होती है जिसमें हाथ से करने के विविध कार्य जैसे की कण्डे बनाना, चरखा चलाना, बाती बनाना, कापड़ बनाना, मिट्टी से गमले और दिया बनाके उसे रंग से सुशोभित करना ऐसे अनेक कार्य में जुड़ जाते हैं ।  इसके बाद शास्त्रीय नृत्य, गोपालन, कृषि, देशी क्रीडाएं रज्जुमलखम,स्तम्भमलखम,कुस्ती एवं कलरीपयट्टु का अभ्यास भी होता है । ५.३० बजे  दूग्धपान के बाद विद्यार्थीगण यज्ञ और गोआरती में जुड़ जाते हैं ।  यज्ञ और गोआरती के बाद अभ्यास के लिए अपने निवास कक्ष में जाते है। ७.४५ को गीताजी के अध्याय का पारायण करने के बाद रात्रिभोजन होता है ।  रात्रिभोजन के बाद दैनिक अभ्यास का चिंतन, गृहकार्य करने के बाद रात को ९.०० से ९.३० बजे विद्यार्थीगण का शयन होता है । ऋतु काल अनुसार दिनचर्या में परिवर्तन होता है।

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छात्रों का अध्यापन में सहभाग

अध्ययन-अध्यापन कार्य को गति देने हेतु एवं भविष्य के प्रतिभाशाली आचार्य निर्माण हेतु छात्रों का अध्यापन में सहभाग अनिवार्य है ।  गोतीर्थ  विद्यापीठ में आचार्य के मार्गदर्शन में सभी विषय एवं कलाएं एक विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थी को सिखातें हैं ।


विद्यापीठ सेवा

गुणीजन बताते हैं ऐसे ‘सेवा’ आत्मशुद्धि का अत्यंत आवश्यक अंग है ।  सेवा से ही विद्यार्थी के मनमें विद्यापीठ के प्रति अपनेपन का भाव जाग्रत होता है ।

गोतीर्थ विद्यापीठ में विद्यार्थीगण परिसर की स्वच्छता, शौचालय की स्वच्छता, अन्नक्षेत्र एवं शौचालय की स्वच्छता से लेकर के परोसने तक सब सेवा, बाग़काम इत्यादि कार्य करते है ।  इसके साथ ही कृषि में सब्जी उगाने से ले करके निंदामण करना, पानी देना, खाद तैयार करना, बीजामृत और जीवामृत तैयार करना ये सभी कार्य किशोरावस्था से ही विद्यार्थीगण विद्यापीठ में करते हैं ।  गोसेवा कार्य में गोशाला की स्वच्छता, गोमाता की चिकित्सा, गोमय से कण्डे बनाना, दूध से दहीं, छाछ, मखखन और घी निकालने की सेवा में भी विद्यार्थीगण जुड़े हुए है।इसका हिसाब और लेखा भी वही रखते है ।  इसके साथ ही यज्ञ एवं आरती की संपूर्ण तैयारी, ग्रंथालय की व्यवस्था, चीज-वस्तु की मरम्मत करना, कपड़ा तैयार करना, गुरुसेवा करना, चूल्हा बनाना, भोजन बनाना, कपडे धोना, बर्तन इत्यादि साफ करना, अतिथि सत्कार का संपूर्ण आयोजन करना इत्यादि सारे कार्य विद्यार्थीगण द्वारा किये जाते हैं ।

विद्यालय संचालन में छात्रों का सहभाग

विद्यालय संचालन सीखना यह सभी विषयोमें सबसे महत्वपूर्ण विषय है यह कार्य एक दिनमें सीखा जाए इतना सरल नहीं है इस बातको ध्यानमें रखते हुए गोतीर्थ विद्यापीठ में पहले से ही विद्यार्थी को प्रतिनिधित्व दिया जाता है यहाँ छोटे छोटे कार्य से प्रतिनिधित्व करते हुए विद्यार्थीगण संचालन के लिए तैयार हो जाते है।गोतीर्थ विद्यापीठ का नचिकेतागण आज संचालन के लिए तैयार हो रहा है यह हमने प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा देखा है ।यहाँ गोशाला का संपूर्ण संचालन , स्वच्छता , गोसेवा , गोचिकित्सा , कण्डे तैयार करना , गोमाता के लिए ऋतु अनुसार सब खाद्य सामग्री तैयार करना , दूध - घी - मखखन - छाछ का संपूर्ण आयोजन करना , यह कार्य विद्यार्थीगण द्वारा किया जाता है । प्रार्थनासभा के लिए प्रार्थनाको स्वरबध्ध करना , वाजिंत्र बजाना , बैठक व्यवस्था करना यह कार्य का संचालन भी विद्यार्थीगण द्वारा होता है

इसके साथ ही विद्यापीठ में कार्यक्रम के संचालन में ध्वनि नियंत्रणकी व्यवस्था, भोजन व्यवस्था, निवास व्यवस्था, सुशोभन व्यवस्था जैसी व्यवस्थाएँ यह विधार्थीगण देखते हैं ।  विद्यापीठ के लिए मुलाकात लेनेवाले अतिथिगण को विद्यापीठ के विचार से परिचित करने का कार्य भी विधार्थीगण द्वारा होता है ।

आनेवाले समय में गोतीर्थ विद्यापीठ संपूर्ण स्वायत्त बने यही आचार्यगण का स्वप्न है|

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समाज सेवा

समाज सेवा का आरंभ व्यक्ति से ही शुरु होता है और व्यक्ति विद्यालय से ही समाज सेवा प्रति जाग्रत होता है ।  ‘समाज को ऐसे नागरिक मिले जो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक रूप से परिपूर्ण हो ।’  यह गोतीर्थ विद्यापीठ का उद्देश्य है ।  गोतीर्थ विद्यापीठ गोसेवा एवं राष्ट्रसेवा को केन्द्र में रखते हुए समाजसेवा को महत्वपूर्ण मानता है ।  यहाँ तैयार हुए विद्यार्थी भारतीय समाज- व्यवस्था एवं अर्थ व्यवस्था को ध्यानमें रखते हुए अपना व्यवसाय करेंगे|
गोतीर्थ विद्यापीठ के विद्यार्थीगण समाज को गोसेवा के प्रति जाग्रत करना, पंचगव्य से चिकित्सा कर के समाजसेवा करना, गुरुकुल परंपरा को पुनर्जीवित करना, गोआधारित सामग्री और गोआधारित कृषि के लिए समाज को तैयार करना, यज्ञ का महत्व समजाना आदि कार्य में जुड़े हुए हैं ।इसी प्रकार विधापीठ समाज के लिए उत्त्कृष्ठ भावि पीढ़ी का निर्माण करें और समाज विद्यापीठ का आर्थिक पोषण करें यही आदर्श स्थिति है।
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बुद्धिमत्ता पूर्ण अर्थ व्यवहार एवं विद्यालयीन व्यवस्था

विधापीठ से ही विद्यार्थी भविष्य में गृहस्थाश्रम के अर्थव्यवहार को समजेगा ।  इसी बात को केन्द्र में रखते हुए गोतीर्थ विद्यापीठ में गोशाला की संपूर्ण अर्थव्यवस्था विद्यार्थीगण देखते हैं ।  इस में प्रतिदिन कितना चारा लगता है, कितना दूध मिलता है, जिसमें से दहीं, मखखन और घी कितना निकलता है । प्रति दिन रसोई घर में कितना घी उपयोग में लिया जाता है यह संपूर्ण व्यवस्था विद्यार्थीगण देखते हैं ।

गोमय से जो खाद एवं कण्डे का निर्माण होता है उससे कितना अर्थोपार्जन होता है उसकी संपूर्ण खातावाही विद्यार्थीगण द्वारा तैयार की जाती है ।  इस के साथ ही कम से कम खर्च में कैसे विद्यालय को चलाएँ जैसे की पानी का बचाव, बिजली का बचाव इसका भी ध्यान रखा जाता है ।

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वर्ग व्यवस्था

गोतीर्थ विद्यापीठ में वर्ग व्यवस्था में पाँच (५) जूथ का आयोजन किया गया है ।  जिस में ध्रुव, प्रह्लाद, आरुणि, उपमन्यु एवं नचिकेता जूथ सम्मिलित है ।  जूथ के विभागीकरण में मात्र वय (उम्र) ही नहीं पर विद्यार्थी की ग्रहणशक्ति, रसरुचि और समजने की परिपक्वता को भी देखा जाता है ।

श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन सभी वर्ग के छात्रों के लिए :-
गीताजी का अध्ययन विद्यार्थी के सम्पूर्ण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है ।  इस हेतु से विद्यार्थी यहाँ से तैयार हो करके निकले तब तक उसे गीताजी के सभी अध्याय सम्पूर्ण कण्ठस्थ हो और अन्वय के द्वारा अर्थ को समजे एसा संचालक श्री का प्रयास है।

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उपार्जन

यहाँ से तैयार हुआ छात्र कभी भी नौकरी के लिए नहीं भटकेगा इस बात को ध्यानमें रखते हुए विद्यार्थी को पहले से ही गोकेन्द्रित आजीविका के लिए प्रेरित किया जाता है ।  जैसे की वह खाद का निर्माण करके उसका समाज में वितरण करें और अर्थोपार्जन सीखें। पंचगव्य आधारित चिकित्सा हेतु औषधिनिर्माण करें ।  गोआधारित जीवनोपयोगी सामग्री जैसे की दंतमंजन, साबून, उबटन, धूप, केशमार्जन इत्यादि का निर्माण करें ।  यह उत्पादनों के प्रयोग हेतु समाज को जाग्रत करनेका कार्य भी विद्यार्थीगण करेंगे ।

विद्यार्थी स्वायत्त बने इस हेतु से जीवनकी प्राथमिक जरूरत जैसे की कपड़ा बनाना, भवन निर्माण करना और गो आधारित कृषि करना यह तीन कार्यों को पहले से ही शिक्षणव्यवस्था से जोडनेका प्रयास हो रहा है ।

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