प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था

श्री गोपाल भाई सुतरिया (संस्थापक गोतीर्थ विद्यापीठ)
प्राचीन भारत का शिक्षा-दर्शन धर्म से ही प्रभावित था। शिक्षा का उद्देश्य धर्माचरण की वृत्ति जाग्रत करना था। शिक्षा, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए थी। इनका क्रमिक विकास ही शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य था। धर्म का सर्वप्रथम स्थान था। धर्म से विपरीत होकर अर्थ लाभ करना मोक्ष प्राप्ति का मार्ग अवरुद्ध करना था। मोक्ष जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य था और यही शिक्षा का भी अन्तिम लक्ष्य था।
प्राचीन काल में जीवन-दर्शन ने शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित किया था। जीवन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का प्रभाव शिक्षा दर्शन पर भी पड़ा था। उस काल के शिक्षकों, ऋषियों आदि ने चित्त-वृत्ति-निरोध को शिक्षा का उद्देश्य माना था। शिक्षा का लक्ष्य यह भी था कि आध्यात्मिक मूल्यों का विकास हो। उस समय भौतिक सुविधाओं के विकास की ओर ध्यान देना किंचित भी आवश्यक नहीं था क्योंकि भूमि धन-धान्य से पूर्ण थी, भूमि पर जनसंख्या का भार नहीं था। किन्तु इसका यह भी अर्थ नहीं था कि लोकोपयोगी शिक्षा का अभाव था। प्रथमत: लोकोपयोगी शिक्षा परिवार में, परिवार के माध्यम से ही सम्पन्न हो जाती थी। वंश की परंपरायें थीं और ये परम्परायें पिता से पुत्र को हस्तान्तरित होती रहती थीं। व्यवसायों के क्षेत्र में प्रतियोगिता नहीं के बराबर थीं। सभी के लिए काम उपलब्ध था। सभी की आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाती थी। आज इस व्यवस्था में थोड़ा परिवर्तन हुआ है अतः युग अनुकूल शिक्षा व्यवस्था करने की आवश्यकता हुई।

श्री कल्पेश भाई जोशी (संचालक गोतीर्थ विद्यापीठ)
गोतीर्थ विद्यापीठ की आवश्यकता
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प्राचीन शिक्षा एवं वर्तमान शिक्षा में से विद्यापीठ के मुख्य लक्ष्य को पूर्ण करने हेतु आवश्यक समन्वय करके युगानुकुल भारतीय शिक्षा छात्रों को प्रदान करने हेतु गोतीर्थ विद्यापीठ की आवश्यकता हुई।
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भारतीय शिक्षण मनुष्यों को अन्य के बारे में भी विचार करना सिखाता है। जो स्वयं के लिए श्रेयस्कर है। परमार्थ की चिंता करने वाला मानवता को श्रेष्ठ बनाता है एवं सृष्टि सर्जन करने वाले परमात्मा का भी मित्र बनता है।जो शिक्षा विद्यार्थी के जीवन में भौतिक समृद्धि का महत्व बताने के साथ-साथ परमार्थ के लिए भी सज्ज़ करती है ऐसी शिक्षा विद्यापीठ के द्वारा दी जाए ऐसा संकल्प है।
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मनुष्य का अंतः करण केवल भौतिक पदार्थों से संतुष्ट नहीं होता,अंतः करण को संतुष्ट और प्रसन्न रखने के लिए सही शिक्षा की आवश्यकता होती है जो भारत के नालंदा आदि विद्यापीठों में दी जाती थी। गोतीर्थ विद्यापीठ तक्षशिला आदि श्रेष्ठ विद्यापीठों के द्वारा निर्देश किए गए मार्ग पर चलने का प्रयास कर रहा है।
गोतीर्थ विद्यापीठ का सूत्र
“सद्विद्याधेनुभिश्चैव भारतं विश्ववाहकम्।”
अर्थात् गुणयुक्त विद्या और गोमाताओं की कृपा से भारत को विश्व का वाहक बनाने का लक्ष्य निर्धारित करके विद्यापीठ सामाजिक विकास हेतु अधिक से अधिक श्रेष्ठ कार्य करने का प्रयत्न कर रहा है। हमें विश्वास है कि; यह निस्वार्थ प्रयत्न दूसरी शिक्षण पद्धतियों के लिए भी प्रेरणा रूप बन सकेगा।


विशेषता:-
छात्र गण में सात्विकता बढ़ाने के लिए देशी गीर गोमाता का पौष्टिक दूध,मख्खन,घी ओर जैविक (आर्गेनिक) भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
हमारे संस्थापक - श्री गोपालभाई सुतारिया (बंसी गीर गोशाला)

हमारे संस्थापक श्री गोपालभाई सुतरिया ने अपना जीवन भारत की गोसंस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए समर्पित किया है। अपने आध्यात्मिक गुरुजी श्री परमहंस हंसानंदतीर्थ दंडीस्वामी के प्रभाव में , अपने जीवन में प्रारंभिक समय से वह राष्ट्र और मानवता की सेवा करने के लिए जीवन बिताने के अभिलाषी थे। वे इ .स. २००६ में अहमदाबाद आए और बंसी गीर गोशाला की स्थापना की।
गोपालभाई के प्रयासों के परिणामस्वरूप बंसी गीर गोशाला गोपालन और गोकृषि के क्षेत्र में प्रयोग, प्रशिक्षण और अनुसंधान का एक उत्कृष्ट केंद्र बन गई है। ‘स्वस्थ नागरिक, स्वस्थ परिवार, स्वस्थ भारत’ के उद्देश्य से, बंसी गीर गोशाला आयुर्वैदिक उपचार के क्षेत्र में प्रभावशाली अनुसंधान और निर्माण का कार्य भी कर रही है।
उनके नेतृत्व में २००६ में स्थापित बंसी गीर गोशाला वैदिक गोपालन का एक उत्कृष्ट केंद्र के रूप में उभरा है। गोशाला ने गो आधारित आयुर्वेद, गो आधारित कृषि और गो आधारित शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त किए हैं। अपने काम में, गोपालभाई को उनके परिवार का मजबूत समर्थन प्राप्त है। आज बंसी गीर गोशाला राष्ट्र में बड़े बदलाव लाने का प्रयास कर रही है, और इस अभियान में बड़ी संख्या में संत महात्मा, गो भक्त, वैदिक विद्वान, कृषि वैज्ञानिक, आयुर्वेदाचार्य और किसान संगठन हृदय से जुड़े हुए हैं।
बंसी गीर गोशाला की जानकारी

गोपाल भाई सुतरिया और उनके छोटे भाई श्री गोपेशभाई सुतरिया बचपन से उनके गुरुजी श्री परमहंस हंसानंदतीर्थ दंडीस्वामी से अत्यंत प्रभावित थे। श्री राजीव दीक्षित जी के स्वदेशी अभियान से प्रेरित होकर २००६ में यह दोनों भाई अहमदाबाद आए और बंसी गीर गोशाला की स्थापना की। कुछ साल बाद दोनों भाइयों ने पहले छात्र के रूप में अपने ४ बच्चों के साथ गोतीर्थ विद्यापीठ गुरुकुल की स्थापना की। जैसे जैसे समय बीतता गया, गोशाला बढ़ती गई और आज गोशाला में १८ गोत्रों से ६०० गोवंश की उपस्थिति है।
पिछले १५ वर्षों से बंसी गीर गोशाला गोपालन, गो आधारित आयुर्वेद और गो आधारित कृषि के क्षेत्र में रचनात्मक बदलाव लाने में प्रयत्नशील है। बंसी गीर गोशाला की गतिविधियों से आज बड़ी संख्या में वैदिक विद्वान, कृषि वैज्ञानिक, आयुर्वेदाचार्य, संत-महात्मा, गो भक्त, किसान संगठन और अनेक सामाजिक संस्थाएं हृदय से जुड़े हुए हैं।
बंसी गीर गोशाला के संस्थापक श्री गोपाल भाई सुतरिया और उनका समस्त परिवार इस अभियान में समर्पित हैं। परिवार और गोशाला से जुड़े लोगों का अटूट विश्वास है कि यह सब परिसर के वातावरण में गुरुजी श्री परमहंस हंसानंदतीर्थ दंडीस्वामी, गोविंद श्री कृष्ण और दिव्य गोमाता की ठोस उपस्थिति के कारण संभव हुआ है।
उत्सव
गोतीर्थ विद्यापीठ में सभी उत्सव सांस्कृतिक ढंग से मनाए जाते हैं। उत्सव के पीछे रहे भव्य एवं दिव्य भावनाओं का दर्शन छात्र गण करें ऐसा हमारा लक्ष्य होता है। विद्यापीठ में गणेशचतुर्थी हनुमानजयंती जन्माष्टमी शिवरात्रि नवरात्रि उत्तरायण एवं होली जैसे उत्सव सात्विक तरीके से मनाए जाते हैं। मनुष्य मात्र को उत्सव प्रिय होता है ऐसा कविकुलगुरु कालिदास जी ने कहां है।
"उत्सवप्रिया: खलु मनुष्याः"|


पुरस्कार और सन्मान

प्रसाद ग्रुप के संस्थापक श्री प्रकाश भाई शाह के ७५ में जन्मदिन निमित्त आयोजित ज्योतिर्मय कार्यक्रम में श्री श्री रविशंकर जी के द्वारा बंसी गीर गोशाला एवं गोतीर्थ विद्यापीठ का सम्मान।

भारत विकास संगम द्वारा भारतीय संस्कृति उत्सव ५ का आयोजन २०१८ दिसंबर विजयपुर कर्नाटक में संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में गोतीर्थ विद्यापीठ के छात्रों के द्वारा गोसूक्त एवं लोक नृत्य प्रस्तुत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।भारतीय संस्कृति उत्सव के अध्यक्ष द्वारा गोतीर्थ विद्यापीठ का सम्मान।

चिन्मय मिशन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता जी के श्लोक गान स्पर्धा का आयोजन किया गया था जिसमें गोतीर्थ विद्यापीठ के छात्रों को पारितोषिक और सम्मान प्राप्त हुआ।

गोतीर्थ विद्यापीठ द्वारा आयोजित वार्षिक उत्सव में गुजरात राज्य के शिक्षा मंत्री परम आदरणीय श्री भूपेंद्र सिंह चुडासमा जी का सम्मान।

वार्षिक उत्सव में कोल्हापुर में स्थित कनेरी मठ के परम पूजनीय काडसिद्धेश्वर स्वामीजी के द्वारा गोतीर्थ विद्यापीठ के प्राचार्य एवं सभी आचार्य गण का सम्मान।

गुजरात राज्य के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत जी गोतीर्थ विद्यापीठ द्वारा आयोजित उपनयन संस्कार में पधारे,छात्रों को आशीर्वचन दिया और श्री गोपाल भाई ने राज्यपाल श्री का सम्मान किया। यह कार्यक्रम आचार्य हिंदू महासभा के अध्यक्ष परम पूजनीय श्री परमात्मा नंद जी की प्रेरणा से संपन्न हुआ।
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[email protected]
पता
बंसी गीर गोशाला
शान्तिपुरा चौकड़ी के पास
मेट्रो मोल की गली में,
सरखेज,अहमदाबाद,पिन:- ३८२२१०